पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
ये कविता शिव मंगल सिंह सुमन द्वारा रचित है। मुझे ये बहुत अच्छी लगती है।
जीवन के कुसुमित उपवन में
गुंजित मधुमय कण-कण होगा
शैशव के कुछ सपने होंगे
मदमाता-सा यौवन होगा
यौवन की उच्छृंखलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं।
पथ में काँटे तो होंगे ही
दूर्वादल, सरिता, सर होंगे
सुंदर गिरि, वन, वापी होंगी
सुंदर सुंदर निर्झर होंगे
सुंदरता की मृगतृष्णा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
मधुवेला की मादकता से
कितने ही मन उन्मन होंगे
पलकों के अंचल में लिपटे
अलसाए से लोचन होंगे
नयनों की सुघड़ सरलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
साक़ीबाला के अधरों पर
कितने ही मधुर अधर होंगे
प्रत्येक हृदय के कंपन पर
रुनझुन-रुनझुन नूपुर होंगे
पग पायल की झनकारों में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
यौवन के अल्हड़ वेगों में
बनता मिटता छिन-छिन होगा
माधुर्य्य सरसता देख-देख
भूखा प्यासा तन-मन होगा
क्षण भर की क्षुधा पिपासा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
जब विरही के आँगन में घिर
सावन घन कड़क रहे होंगे
जब मिलन-प्रतीक्षा में बैठे
दृढ़ युगभुज फड़क रहे होंगे
तब प्रथम-मिलन उत्कंठा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
जब मृदुल हथेली गुंफन कर
भुज वल्लरियाँ बन जाएँगी
जब नव-कलिका-सी
अधर पँखुरियाँ भी संपुट कर जाएँगी
तब मधु की मदिर सरसता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
जब कठिन कर्म पगडंडी पर
राही का मन उन्मुख होगा
जब सब सपने मिट जाएँगे
कर्तव्य मार्ग सन्मुख होगा
तब अपनी प्रथम विफलता में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
अपने भी विमुख पराए बन कर
आँखों के सन्मुख आएँगे
पग-पग पर घोर निराशा के
काले बादल छा जाएँगे
तब अपने एकाकी-पन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
जब चिर-संचित आकांक्षाएँ
पलभर में ही ढह जाएँगी
जब कहने सुनने को केवल
स्मृतियाँ बाक़ी रह जाएँगी
विचलित हो उन आघातों में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
हाहाकारों से आवेष्टित
तेरा मेरा जीवन होगा
होंगे विलीन ये मादक स्वर
मानवता का क्रंदन होगा
विस्मित हो उन चीत्कारों
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
रणभेरी सुन कह ‘विदा, विदा!
जब सैनिक पुलक रहे होंगे
हाथों में कुंकुम थाल लिए
कुछ जलकण ढुलक रहे होंगे
कर्तव्य प्रणय की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
वेदी पर बैठा महाकाल
जब नर बलि चढ़ा रहा होगा
बलिदानी अपने ही कर सेना
निज मस्तक बढ़ा रहा होगा
तब उस बलिदान प्रतिष्ठा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
कुछ मस्तक कम पड़ते होंगे
जब महाकाल की माला में
माँ माँग रही होगी आहुति
जब स्वतंत्रता की ज्वाला में
पलभर भी पड़ असमंजस में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं!
Comments
Post a Comment