कतिको पूनो

कल रात को, मै अपने एक मित्र के कमरे से रात्रि भोजन के बाद वापस अपने कमरे पर  आ रहा था। तभी मैंने गौर किया की उन रास्तो के किनारे छोटे - छोटे तालाब है। ये तालाब में बहुत सारे कमल और कुमुदिनी के फूल है।
  
उन पर जब चांदिनी पड़ती है तो वह बहुत ही मनोरम दिखता है। लगता है इसे देखता ही रहू।       

इसी को देख कर मुझे मेरे दसवीं कक्षा की एक कविता याद आ गई। यह कविता "अज्ञेय जी " ने लिखी थी।  कविता का शीर्षक "कतिको पूनो " है।  जो इस प्रकार है :-
 
छिटक रही है चांदनी,
मदमाती, उन्मादिनी,
कलगी-मौर सजाव ले
कास हुए हैं बावले,
पकी ज्वार से निकल शशों की जोड़ी गई फलांगती--
सन्नाटे में बाँक नदी की जगी चमक कर झाँकती !

कुहरा झीना और महीन,
झर-झर पड़े अकास नीम;
उजली-लालिम मालती
गन्ध के डोरे डालती;
मन में दुबकी है हुलास ज्यों परछाईं हो चोर की--
तेरी बाट अगोरते ये आँखें हुईं चकोर की !   

Comments

Popular posts from this blog

जाड़े की धूप

मुझे कदम-कदम पर

देशभक्ति कविताएँ