हे मिथिला की राजकुमारी
हे मिथिला की राजकुमारी...!
हे वसुधा की पुत्री प्यारी...!
बाबा जनक की प्रिय जानकी...!
मैया सुनैना की सीया सुकुमारी...!
तेरे मिथिला की ये तुच्छ धिया,
कुछ बोले है तू सुन ले सीया...!!
शिव धनु तूने एक हाथ संभाला...
मिथिलांचल को धन्य कर डाला...
स्वयंवर से बानी राम की परिणीता।
तूने अवध नगर को खूब दुलारा...!
हे भूसुता। हे जानकसुता! हे वैदेही !
सुनैयो अरज हे मैथिलि मोरी...
मैया मोहे इतना बतला...
अदम्य धैर्य तोहे कैसे मिला...
वन कंटक तक झेले तूने...
कुछ न बोली चुपचाप सहा...
स्वर्ण मृग पर हुई तो मोहित,
ऐसी तो न थी, फिर क्यों किया ...??
गोदावरी का जल, पंचवटी की कुटिया
तेरे न होने से सब विह्वल था।
ले गया तुझे लंका पति रावण
रघुनन्दन का मन भी विचलित था.
रघुकुल के मर्यादा की, राम के परिणीता की
या किसी स्त्री सीता की !!!
किसकी खोज हुई हे जनकसुता ???
तु सशक्त थी, स्वंय की रक्षा में,
ना डरी ना झुकी लंकेश के समक्ष,
पवित्र थी तु... मर्यादा पुरुषोत्तम को ज्ञात था...!
क्यों खड़ी न हुई तू न्याय के समक्ष,
क्यों अग्नि परीक्षा दी भूसुता...!
क्यों उसके बाद भी त्यागी गयी ??
गर्भवती हो वन वन भटकी
तेरी सुधि किसी ने ना ली
लव - कुश जैसे दो पुत्र जने
किसके सहारे उन्हें छोड़ गयी
धरती मैया की गोद गयीं
बोल ना मैया ये काहे किया
एक बात तु ना जाने है वैदेही
मिथिला की ये पावन भूमि
हर बेटी से तेरे जैसा होने को कहे है
तु आदर्श थी हम सब जाने है
तेरा मौन रहना खटके है सीया
बोल दे मैया क्या तूने सही किया??
मैं ना जानू वेद पुराण
नहीं मुझे तेरे जितना ज्ञान
पर वैदेही तु चुप क्यों थी??
कहे बानी तू इतनी महान
एक तेरे चुप रहने से,
हम सब इतना कुछ भुगत रहे
औरत सीता जैसी ही यही सब चाहे
बोल ना मैया इतना धीरज कौन दिखाये
क्यों मौन रहे सच न कह पाये ????
हे वसुधा की पुत्री प्यारी...!
बाबा जनक की प्रिय जानकी...!
मैया सुनैना की सीया सुकुमारी...!
तेरे मिथिला की ये तुच्छ धिया,
कुछ बोले है तू सुन ले सीया...!!
शिव धनु तूने एक हाथ संभाला...
मिथिलांचल को धन्य कर डाला...
स्वयंवर से बानी राम की परिणीता।
तूने अवध नगर को खूब दुलारा...!
हे भूसुता। हे जानकसुता! हे वैदेही !
सुनैयो अरज हे मैथिलि मोरी...
मैया मोहे इतना बतला...
अदम्य धैर्य तोहे कैसे मिला...
वन कंटक तक झेले तूने...
कुछ न बोली चुपचाप सहा...
स्वर्ण मृग पर हुई तो मोहित,
ऐसी तो न थी, फिर क्यों किया ...??
गोदावरी का जल, पंचवटी की कुटिया
तेरे न होने से सब विह्वल था।
ले गया तुझे लंका पति रावण
रघुनन्दन का मन भी विचलित था.
रघुकुल के मर्यादा की, राम के परिणीता की
या किसी स्त्री सीता की !!!
किसकी खोज हुई हे जनकसुता ???
तु सशक्त थी, स्वंय की रक्षा में,
ना डरी ना झुकी लंकेश के समक्ष,
पवित्र थी तु... मर्यादा पुरुषोत्तम को ज्ञात था...!
क्यों खड़ी न हुई तू न्याय के समक्ष,
क्यों अग्नि परीक्षा दी भूसुता...!
क्यों उसके बाद भी त्यागी गयी ??
गर्भवती हो वन वन भटकी
तेरी सुधि किसी ने ना ली
लव - कुश जैसे दो पुत्र जने
किसके सहारे उन्हें छोड़ गयी
धरती मैया की गोद गयीं
बोल ना मैया ये काहे किया
एक बात तु ना जाने है वैदेही
मिथिला की ये पावन भूमि
हर बेटी से तेरे जैसा होने को कहे है
तु आदर्श थी हम सब जाने है
तेरा मौन रहना खटके है सीया
बोल दे मैया क्या तूने सही किया??
मैं ना जानू वेद पुराण
नहीं मुझे तेरे जितना ज्ञान
पर वैदेही तु चुप क्यों थी??
कहे बानी तू इतनी महान
एक तेरे चुप रहने से,
हम सब इतना कुछ भुगत रहे
औरत सीता जैसी ही यही सब चाहे
बोल ना मैया इतना धीरज कौन दिखाये
क्यों मौन रहे सच न कह पाये ????
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