आओ प्रिय दिवाली मनाए
कहा उसने
आओ प्रिय दिवाली मनाए।
अपने संग होने की
खुशियों में समाए
आओ प्रिय दिवाली मनाए।
हाथ पकड़ दीये के पास लाई
जलाने को जो उसने लौ उठाई
तभी देखा
दूर एक घर
अंधेरों में डूबा था।
बम के धमाको से
ये भी तो थरार्या था
आंगन में उनके
करुण क्रंदन का साया था।
पड़ोस डूबा हो जब अंधकारों में
तो हम घर अपना कैसे सजाए
तुम ही कहो प्रिय
दिवाली हम कैसे मनाए ?
करके हिम्मत उसने
एक फुलझड़ी थमाई
लाल बत्ती पे गाड़ी पोछते
उस मासूम की
पथराई आंखे याद आई
याचना के बदले मिला तिरस्कार
पैसो के बदले मिला दुत्कार
घर में जब गर्मी न हो
वो पटाखे कैसे जलाए
जब है खाली उसके हाथ
हम फुलझड़ियाँ कैसे छुड़ाये ?
तुम ही कहो प्रिय
दिवाली हम कैसे मनाए ?
आओ प्रिय दिवाली मनाए।
अपने संग होने की
खुशियों में समाए
आओ प्रिय दिवाली मनाए।
हाथ पकड़ दीये के पास लाई
जलाने को जो उसने लौ उठाई
तभी देखा
दूर एक घर
अंधेरों में डूबा था।
बम के धमाको से
ये भी तो थरार्या था
आंगन में उनके
करुण क्रंदन का साया था।
पड़ोस डूबा हो जब अंधकारों में
तो हम घर अपना कैसे सजाए
तुम ही कहो प्रिय
दिवाली हम कैसे मनाए ?
करके हिम्मत उसने
एक फुलझड़ी थमाई
लाल बत्ती पे गाड़ी पोछते
उस मासूम की
पथराई आंखे याद आई
याचना के बदले मिला तिरस्कार
पैसो के बदले मिला दुत्कार
घर में जब गर्मी न हो
वो पटाखे कैसे जलाए
जब है खाली उसके हाथ
हम फुलझड़ियाँ कैसे छुड़ाये ?
तुम ही कहो प्रिय
दिवाली हम कैसे मनाए ?
जब खाया नहीं
तो दूध कहा से आये
छाती से चिपकाये बच्चे को
सोच रही थी भूखी माँ
मिठाइयों की महक से
हो रही थी और भूखी माँ।
खाली हो जब पेट अपनों के
कोई तब जेवना कैसे जेवे
अब तुम ही कहो प्रिय
दिवाली हम कैसे मनाए ?
भरी आँखों से देखा उसने मुझको
फिर लिये कुछ दीये, पटाखे और मिठाइयां
संग ले के मुझको
झोपड़ियों के बस्ती में गई।
हमारी आहट से ही
नयन दीप जल उठे
पपड पड़े होंठ मुस्कराएं
सिकुड़ती आंतो को आस बंधी
आंधियारो में डूबा बचपन
आशा की किरण से दमक उठा
अमावस की काली रात में
जब प्रसन्नता की दामिनी चमक उठी।
तो अब आओ प्रिय
दिवाली हम ख़ुशी से मनाए
सुनो न
दिवाली हम सदा ऐसे मनाए।
-रचना श्रीवास्तव
Wow
ReplyDeleteThanks!!!
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