दीपावली

इस दीपावली पर मुझे  "श्री अटल बिहारी वाजपेयी" ये कविता याद  आती है। जो इस प्रकार है :-

जब मन में मौज हो बहरो की
चमकाएँ चमक सितारों की ,
जब खुशियों के सुबह घेरे हो
तन्हाई में भी मेले हो,
आनंद की आभा होती है
उस रोज दीपावली होती है। 

             जब प्रेम के दीपक जलते हों
             सपने जब सच में बदलते हों ,
             मन में मधुरता भावो की
             जब लहके फसले चावों की ,
             उत्साह की आभा होती है
             उस रोज दीपावली होती है। 

जब प्रेम से मीत बुलाते हो
दुश्मन भी गले लगाते हों ,
जब कहीं किसी से वैर न हो
सब अपने हो कोई गैर न हो,
अपनत्व की आभा होती हैं
उस रोज दीपावली होती है। 

              जब तन मन जीवन सज जाए
              सदभाव के बजे बज जाए,
               महकाए खुश्बू खुशियों की
               मुस्काए चाँदनिया सुधियों की ,
               तृप्ति  की आभा होती है
                उस रोज दीपावली होती है।  

  

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