पुराने दोस्तों के दरवाजे खटखटाते हैं

मुझे यह कविता पुराने दोस्तों की याद दिलाती है।  मेरे आने वाली छुट्टियो में, मै उनसे मिलूंगा और देखूंगा का वो वाकई मुझसे मिलकर खुश है की नहीं।

वैसे यह  कविता " श्री गुलज़ार साहेब " की लिखी हुई  है।

चलो कुछ  पुराने  दोस्तों  के ,
           दरवाजे खटखटाते है ,
देखते है उनके पंख थक चुके है ,
       या अभी भी फड़फड़ाते है ,

हॅसते है खिलखिलाकर,
     या होंठ बंद कर मुस्कराते है ,
वो बता देते है सारी आप बीती ,
    या सिर्फ सफलताएं सुनते है ,

हमारा चेहरा देख वो,
   अपनेपन से मुस्कराते है ,
या घड़ी की और देखकर ,
    हमें जाने का वक्त बताते है,

चलो कुछ पुराने दोस्तों के ,
     दरवाजे खटखटाते है।      

Comments

  1. Very nice poem . . keep it up.. your blogs give a few seconds of much needed rest to mind

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