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दीपावली

इस दीपावली पर मुझे  "श्री अटल बिहारी वाजपेयी" ये कविता याद  आती है। जो इस प्रकार है :- जब मन में मौज हो बहरो की चमकाएँ चमक सितारों की , जब खुशियों के सुबह घेरे हो तन्हाई में भी मेले हो, आनंद की आभा होती है उस रोज दीपावली होती है।               जब प्रेम के दीपक जलते हों              सपने जब सच में बदलते हों ,              मन में मधुरता भावो की              जब लहके फसले चावों की ,              उत्साह की आभा होती है               उस रोज दीपावली होती है।  जब प्रेम से मीत बुलाते हो दुश्मन भी गले लगाते हों , जब कहीं किसी से वैर न हो सब अपने हो कोई गैर न हो, अपनत्व की आभा होती हैं उस रोज दीपावली होती है।                जब तन मन जीवन सज जाए               सदभाव ...

संघर्ष करने वाले साथियो को समर्पित

जिंदगी यही कहानी हर रोज सी बन गयी है। सुबह मैथ्स से शाम रीजनिंग तक पहुंच गयी है। हमारी पूरी मुस्कान इस कम्बख्त जीके (G.K ) ने चुराई है। नाउन (noun ) से एडजेक्टिव (adjective ) तक एरर (error ) ढूंढ रहे है। सच बताये तो खुद की शक्ल के लिए  मिरर (mirror) ढूंढ रहे है। एक औरत फोटो को इशारा करके रिश्तेदारी समझती है। ये कैसी रीजनिंग है जो दूसरे के घर ताकाझाँकी सिखाती है। कही नल खुले छूट जाते है , तो कही दूध में मिलावट है। सच में वो पागल, धारा के विपरीत जाता है या महज दिखावट है। क्या जरुरत थी पानीपत के तीन - तीन युद्ध लड़ने की, और वास्कोडिगामा के जहाज को कालीकट से भिड़ने की। इस तैयारी में कितनी बार आँखे भर आयी है , अब तो मिल जाये जॉब, उम्र होने को आई है।