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बन्दर मामा

 बन्दर मामा  पहन पैजामा, दावत खाने आये।  ढीला  कुरता , टोपी, जूता   पहन बहुत इतराए।  रसगुल्ले पर जी ललचाया, मुँह में रखा गप से।  नरम नरम था, गरम गरम था, जीभ जल गई लप से।  बन्दर मामा रोते रोते  वापस घर को आए।  फेंकीं टोपी, फेंका जूता, रोए और पछताए।

नानी

 नानी  नानी सुनो कहानी, एक था राजा एक थी रानी।  राजा बैठे घोड़े पर , रानी बैठे पालकी मे।  बारिश आई बरसा पानी , भीगा राजा बच गई रानी। 

मेरे बेटे के लिए कविताएं

मेरे बेटा जो एलकेजी में है। उसके लिए, मैंने इस ब्लॉग प्रविष्टि को बनाया है। यहाँ, मैं उसकी कक्षा की कविताये  और छोटी कहानियाँ पोस्ट करना शुरू करूंगा। यह हमारे लिए है, जब हम बिस्तर पर हों, यात्रा कर रहे हों और कुछ फुर्सत के काम कर रहे हों, इनको पढ़ सके। गाड़ी करती छुक छुक छुक, घंटी बजती टुन टुन टुन, गुड़िया नाचे छुन छुन छुन।  घोडा भागे टप टप टप, पानी बरसे छप छप छप।     

ख्वाहिश नहीं मुझे मशहूर होने की

 एक अज्ञात कवि की एक "सुंदर कविता", जिसके एक-एक शब्द को, बार-बार "पढ़ने" को "मन करता" है-_* ख्वाहिश नहीं, मुझे मशहूर होने की,"         _आप मुझे "पहचानते" हो,_         _बस इतना ही "काफी" है।_😇 _अच्छे ने अच्छा और_ _बुरे ने बुरा "जाना" मुझे,_         _जिसकी जितनी "जरूरत" थी_         _उसने उतना ही "पहचाना "मुझे!_ _जिन्दगी का "फलसफा" भी_ _कितना अजीब है,_         _"शामें "कटती नहीं और_   -"साल" गुजरते चले जा रहे हैं!_ _एक अजीब सी_ _'दौड़' है ये जिन्दगी,_    -"जीत" जाओ तो कई_  -अपने "पीछे छूट" जाते हैं और_ _हार जाओ तो,_ _अपने ही "पीछे छोड़ "जाते हैं!_😥 _बैठ जाता हूँ_ _मिट्टी पे अक्सर,_         _मुझे अपनी_         _"औकात" अच्छी लगती है।_ _मैंने समंदर से_ _"सीखा "है जीने का तरीका,_         _चुपचाप से "बहना "और_         _अपनी "मौज" में रहना।_ _ऐसा नहीं कि मुझमें_ _कोई "ऐब "नहीं है,_    ...

खटमल

उमड़ उमड़ आए खटमल मैं जागा सारी रात बिस्तर क्या था, जंगल था, मैं भागा सारी रात ख़ून खींचता रहा रगों से आगा सारी रात अस्पताल में यों हम बैठे नागा सारी रात अभी-अभी मारा, फिर कैसे निकला यह पाताल से तरुण गुरिल्ला मात खा गए शिशु खटमल की चाल से रात्रि-जागरण-दिन की निद्रा चिपके मेरे भाल से यम की नानी डरती होगी खटमल के कंकाल से निकल आया फिर कहाँ से खटमलों का यह हजूम मैं ज़रा जाता हूँ बाहर मैं ज़रा आता हूँ घूम रक्त बीजों की फ़सल को मौत क्या सकती है चूम मगर बाहर मच्छरों ने भी मचा रक्खी है धूम हम भी भागे, छिपकलियाँ भी भागीं सारी रात हम भी जागे, छिपकलियाँ भी जागीं सारी रात जीत गई छिपकलियाँ, लेकिन हमने मानी हार अपने बूते सौ पचास भी मच्छर सके न मार जीत गईं छिपकलियाँ, लेकिन हमने मानी हार अपने बूते सौ पचास भी खटमल सके न मार

राखी की चुनौती

बहिन आज फूली समाती न मन में। तड़ित् आज फूली समाती न घन में॥ घटा है न फूली समाती गगन में। लता आज फूली समाती न वन में॥ कहीं राखियाँ हैं चमक है कहीं पर, कहीं बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं। ये आई है राखी, सुहाई है पूनों, बधाई उन्हें जिनको भाई मिले हैं॥ मैं हूँ बहिन किंतु भाई नहीं है। है राखी सजी पर कलाई नहीं है॥ है भादों, घटा किंतु छाई नहीं है। नहीं है ख़ुशी पर रुलाई नहीं है॥ मेरा बंधु माँ की पुकारों को सुनकर के तैयार हो जेलख़ाने गया है। छीनी हुई माँ की स्वाधीनता को वह ज़ालिम के घर में से लाने गया है॥ मुझे गर्व है किंतु राखी है सूनी। वह होता, ख़ुशी तो क्या होती न दूनी? हम मंगल मनावें, वह तपता है धूनी। है घायल हृदय, दर्द उठता है ख़ूनी॥ है आती मुझे याद चित्तौरगढ़ की, धधकती है दिल में वह जौहर की ज्वाला। है माता-बहिन रोके उसको बुझातीं, कहो भाई तुमको भी है कुछ कसाला? है, तो बढ़े हाथ, राखी पड़ी है। रेशम-सी कोमल नहीं यह कड़ी है॥ अजी देखो लोहे की यह हथकड़ी है। इसी प्रण को लेकर बहिन यह खड़ी है॥ आते हो भाई? पुनः पूछती हूँ— कि माता के बंधन की है लाज तुमको? —तो बंदी बनो, देखो बंधन है कैसा, चुनौती यह ...

क़दम क़दम बढ़ाए जा

क़दम क़दम बढ़ाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा; ये ज़िंदगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाए जा। उड़ी तमिस्र रात है, जगा नया प्रभात है, चली नई जमात है, मानो कोई बरात है, समय है, मुस्कुराए जा, ख़ुशी के गीत गाए जा। ये ज़िंदगी है क़ौम की तू क़ौम पे लुटाए जा। जो आ पड़े कोई विपत्ति मार के भगाएँगे, जो आए मौत सामने तो दाँत तोड़ लाएँगे, बहार की बहार में बहार ही लुटाए जा। क़दम क़दम बढ़ाए जा, ख़ुशी के गीत गाए जा। जहाँ तलक न लक्ष्य पूर्ण हो समर करेंगे हम, खड़ा हो शत्रु सामने तो शीश पै चढ़ेंगे हम, विजय हमारे हाथ है विजय-ध्वजा उड़ाए जा। क़दम क़दम बढ़ाए जा, ख़ुशी के गीत गाए जा। क़दम बढ़े तो बढ़ चले, आकाश तक चढ़ेंगे हम, लड़े हैं, लड़ रहे हैं, तो जहान से लड़ेंगे हम; बड़ी लड़ाइयाँ हैं तो बड़ा क़दम बढ़ाए जा। क़दम क़दम बढ़ाए जा ख़ुशी के गीत गाए जा। निगाह चौमुखी रहे, विचार लक्ष्य पर रहे, जिधर से शत्रु आ रहा उसी तरफ़ नज़र रहे, स्वतंत्रता का युद्ध है, स्वतंत्र होके गाए जा। क़दम क़दम बढ़ाए जा, ख़ुशी के गीत गाए जा। ये ज़िंदगी है क़ौम की तू क़ौम पे लुटाए जा।