मुझे कदम-कदम पर
मैंने इसबार का बजट (आय व्यय पत्र) देखा। उसमे वित्तमंत्री श्री पियूष गोयल जी को सुना। उसमे उन्होंने एक पंक्ति बोली : "एक पाव रखता हु, और हज़ारो राहे फुट पड़ती है". ये पंक्ति मुझे बहुत ही अच्छी लगी। इसपर ढूंढने पर मुझे मिला की ये पंक्ति "श्री गजानन माधव मुक्तिबोध" के द्वारा लिखी हुए कविता "मुझे कदम-कदम पर" से ली गयी है। ये कविता मुझे बहुत ही अच्छी लगी। ये कविता बहुत हद तक मेरे विषय में लिखी हो ऐसा लगने लगा। इसलिए इस कविता को यहाँ लिख रहा हूँ । मुझे कदम-कदम पर मुझे कदम-कदम पर चौराहे मिलते हैं बाँहे फैलाए !! एक पैर रखता हूँ कि सौ राहें फूटतीं, व मैं उन सब पर से गुजरना चाहता हूँ बहुत अच्छे लगते हैं उनके तजुर्बे और अपने सपने... सब सच्चे लगते हैं; अजीब सी अकुलाहट दिल में उभरती है मैं कुछ गहरे मे उतरना चाहता हूँ, जाने क्या मिल जाए !! मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में चमकता हीरा है, हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है, प्रत्येक सुस्मित में विमल सदानीरा है मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में महाकाव्य-पीड़ा है, पल-भर मैं सबमें...