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Showing posts from September, 2017

बंजारा

मै बंजारा, वक्त के कितने शहरो से  गुजरा हो , लेकिन वक्त के इसी शहर  से, जाते - जाते मुड़कर  देख रहा हूँ  सोच रहा हूँ,  तुमसे ये मेरा नाता भी टूट रहा है. तुमने मुझको छोड़ा था, जिस शहर में आके वो शहर भी मुझसे छूट  रहा है।   मुझको विदा करने आये है  इस नगर के सारे वासी, वह सारे दिन  जिनके कंधे पे सोती है  अब भी तुम्हारी जुल्फ  की खुशबू           सारे लम्हे, जिनकी माथे पर है  अब भी रोशन तुम्हारे लम्स का टीका।  नाम आँखों से मुझको देख रहे है, मुझको इनके दुःख का पता है, इनको मेरे गम की खबर है।  लेकिन मुझको हुक्मे - सफर है, जाना होगा  वक्त के अगले शहर मुझे  अब जाना होगा।  वक्त के अगले शहर के  सारे बाशिंदे, सब दिन, सब रातें  जो तुमसे न वाकिफ होंगे, कब कब मेरी बात सुनेगे।  मुझसे कहेंगे  जाओ अपनी राह लो राही, हमको कितने काम पड़े है।  जो बीती सो बीत गई,...

पुराने दोस्तों के दरवाजे खटखटाते हैं

मुझे यह कविता पुराने दोस्तों की याद दिलाती है।  मेरे आने वाली छुट्टियो में, मै उनसे मिलूंगा और देखूंगा का वो वाकई मुझसे मिलकर खुश है की नहीं। वैसे यह  कविता " श्री गुलज़ार साहेब " की लिखी हुई  है। चलो कुछ  पुराने  दोस्तों  के ,            दरवाजे खटखटाते है , देखते है उनके पंख थक चुके है ,        या अभी भी फड़फड़ाते है , हॅसते है खिलखिलाकर,      या होंठ बंद कर मुस्कराते है , वो बता देते है सारी आप बीती ,     या सिर्फ सफलताएं सुनते है , हमारा चेहरा देख वो,    अपनेपन से मुस्कराते है , या घड़ी की और देखकर ,     हमें जाने का वक्त बताते है, चलो कुछ पुराने दोस्तों के ,      दरवाजे खटखटाते है।